July 27, 2024
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Ayodhya सतत संघर्षों का परिणाम है राम मंदिर

लेख – विजय दोशी

आज जब भव्य राममंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के उत्साह में सभी सराबोर हैं तब हम याद कर रहे हैं 1990 के उन दिनों की जब अयोध्या चलो के नारे पर हम बैंक कर्मी होते हुए भी अयोध्या के लिए निकल पड़े थे. हम लोग उस समय भोपाल में बैंक ऑफ महाराष्ट्र में कार्यरत थे. देशहित की बात करने वाले भारतीय मजदूर संघ के हम लोग सदस्य और पदाधिकारी भी रहे और हर देशहित के काम में जोर शोर से भाग लेना हमारी आदतों मेंशामिल रहा. वर्ष 1990 में राम मंदिर के निर्माण को लेकर जन आंदोलन के रूप में आदरणीय लालकृष्ण आडवाणी ने रथयात्रा निकाली तब पूरे देश में एक जागृति की लहर थी. उसी समय भारतीय मजदूर संघ ने अयोध्या चलो का नारा दिया. भारतीय मजदूर संघ से संबंधित सभी संगठनों के प्रमुख पदाधिकारियों को लेकर एक बस अयोध्या जाने का कार्यक्रम बना. उसमे हमारी बैंक से में विजय दोशी, प्रमोद द्रविड़, प्रशांत गोलवलकर, सेंट्रल बैंक से रमेश तांबे, अनिल नेमा, एस के मिश्रा, भेल से ब्रतपाल जी गुप्ता, कौशिक, राज्य कर्मचारी संगठन के श्रीवास्तव जी, बिजली संघ के तिवारी जी तथा अन्य करीबन 40 पदाधिकारी ने 26 अक्टूबर 1990 को सुबह हमारी बस भोपाल से रवाना हुई। जगह जगह भव्य स्वागत हुआ. मध्यप्रदेश की सीमा समाप्त होते ही हमें पता चला कि हालात क्या हैं, यूपी की बॉर्डर पर ही हमें हमे गिरफ्तार कर जौनपुर जेल भेज दिया गया. वहां इतने अधिक कैदी ले आए गए थे कि जेल परिसर में ही अस्थाई टेंट लगाकर उसे खुली जेल बनाने की जरुरत पड़ गई. जहां हमें रखा गया वहां में मध्यप्रदेश के तीन सांसद श्री रामेश्वर पाटीदार खरगोन, रामप्रसाद कुसुमारिया तथा विदिशा के हमारे सांसद तथा 18 वर्ष तक मुख्यमंत्री रहे श्री शिवराजसिंह चौहान भी हमारे साथ टेंट में मौजूद थे तथा उसके साथ नौ विधायक जिसमे अंतरसिंह, लालसिंह तथा गुप्ताजी बड़वाह भी मौजूद थे. हम लोग जेल में नौ दिन तक बंद रहे. इन नौ दिन तक जो खाना बनाया जाता था उसके वितरण की व्यवस्था हमारे पास थी। चाहे सांसद हो, मंत्री हो या विधायक हो, सभी लाइन में लगकर खाना लेते थे. इन नौ दिनों की कैद की वजह सिर्फ यही थी कि हम राम मंदिर के लिए संघर्ष कर रहे थे. रोज शाम को भजन का कार्यक्रम रहता था जिसमें राम भजन खासतौर पर उत्साह लिए होते थे और इन भजनों को गाने में शिवराजसिंह जी चौहान अव्वल रहते क्योंकि उन्हें काफी भजन याद भी थे इसलिए उनसे फरमाइशें होतीं और वे रोज बहुत सारे भजन सुनाते थे, हालांकि आज के रक्षा मंत्री राजनाथसिंह भी उसी जेल में बंद थे परंतु चूंकि वे उस समय भी बड़े नेता थे और उत्तरप्रदेश में उनका प्रभाव काफी था इसलिए उन्हें बैरक में रखा गया था जबकि कई सांसदों और विधायकों के साथ हम लोग खुली जेल में जेल परिसर में ही कैद थे. चूंकि हम लोग बैंक में अधिकारी थे और बैंक के नियमानुसार यदि कोई व्यक्ति जेल में 24 घंटे से अधिक रहता है तो उसे उसी समय सस्पेंड कर दिया जाता है तथा बैंक में कई विरोधी यूनियन होती है तथा उसमे कम्युनिस्ट यूनियन भी थी अतः हमने उस समय आज तक यह बाते किसी भी स्तर पर नहीं उठाई जिसमे हमारी यूनियन का प्लेटफार्म भी है. नवें दिन आंदोलन समाप्त हो जाने के बाद यूपी पुलिस ने हमे सीधे प्लेटफार्म पर ट्रेन में बिठा दिया तथा हम वापस भोपाल पहुंच गए. उस समय इस दिन ट्रेन में जिन लोगो का आरक्षण था, उन्होंने खुशी खुशी हमारे साथ उस दिन सीट शेयरिंग की। उन्हें बहुत बहुत धन्यवाद,
आज जब पूरा भारत अयोध्या और राम मंदिर के लिए डतसाहित है और पूरा देश राममस हो रहा है तब हम उन जेल के दिनों की वही राममस याद करते हैं. हम कह सकते हैं कि उस खुली जेल में जो भक्ति और राम लहर का अहसास हमें होता था वही आज हम पूरे देश में देख पा रहे हैं.