Mouth organ बजाता था सरनेम ही माउथो हो गया
खलनायक फिल्म से बड़ी पहचान मिली और खलनायकी के रोल लगातार मिले लेकिन मिलें तो लगेगा कि किसी संत से मिल रहे हैं, ये हैं वे प्रमोद माउथो जिन्हें सौ से ज्यादा फिल्मों में आप देख चुके हैं, वेब सीरिज से लेकर धारावाहिक चाणक्य तक में इन्हें सराहा गया लेकिन वे अपनी हर सफलता के श्रेय को उतनी ही सहजता से कभी निर्देशक तो कभी कहानीकार के खाते में डाल देते हैं जिस तरह पानी की तरह बहते हुए वे बात करते हैं. प्रमोद माउथो इंदौर में थे तो उनसे एक अनौपचारिक मुलाकात में कई सवाल जवाब हुए और उसी सिलसिले को आदित्य पांडे ने साक्षात्कार का यह रुप दे दिया है.
थिएटर से शुरुआत और फिल्मों तक के इस सफर के बारे में…
पिताजी डॉक्टर बनाना चाहते थे लेकिन मैं डॉक्टर नहीं बना, थिएटर से एनएसडी और फिल्मों तक का सफर चुना हुआ नहीं था बल्कि सब होता गया. सच तो यह है कि मैंने उतनी मेहनत भी नहीं की जितनी बताई जाती है लेकिन एक के बाद दूसरे का सिलसिला चलता गया और मैं आज आपके सामने हूं .
क्या आपकी जेबतलाशी में आज भी माउथ ऑर्गन मिल पाएगा क्योंकि प्रमोद शर्मा से प्रमोद माउथो नाम तो इसी माउथ ऑर्गन की वजह से ही मिला?
वाकई लंबे समय तक मेरी जेब में हमेशा माउथ ऑर्गन पाया जाता था, यह भी सच है कि मुझे माउथो सरनेम इसी की वजह से मिला लेकिन सच यह भी है कि मैं शर्मा सरनेम के साथ किसी आम परसेप्शन में नहीं बंधना चाहता था इसलिए अब नम
नाम प्रमोद माउथो ही हो गया है.
चाणक्य में रोल मिलने का क्या किस्सा था?
मैं और मेरा दोस्त एक पान की दुकान पर खड़े थे अचानक मेरी एक दोस्त ने मुझे देखा और बताया कि तुम्हें चंद्रप्रकाश द्विवेदी तो न जाने कब से तलाश रहे हैं. उन्होंने मुझ तक संदेश भी पहुंचाए थे लेकिन वे मुझे नहीं मिल सके या कहें इरादतन किसी ने रोक लिए. जैसे ही मुझे यह बताया गया में तुरंत द्विवेदी जी से मिला और उसी शाम मुझे इस सीरियल में साइन कर लिया गया क्योंकि वे मेरा नेहरु के रुप में किया गया काम देख चुके थे.
वैसे खलनायक के रोल निभाने के कितने समय बाद आप नॉर्मल हो पाते हैं?
तुरंत, तत्काल… दरअसल मैं मेथड एक्टिंग वालों के बारे में बिना कुछ टिप्पणी किए भी यह कहना चाहता हूं कि मैं किरदार निभाने के तुरंत बाद नॉर्मल हो जाता हूं, हो सकता है यह थिएटर की ट्रेनिंग का नतीजा हो या मेरे अपने व्यक्तित्व की अच्छाई या बुराई में से कुछ हो लेकिन न तो मैं डॉयलॉग रटने में भरोसा रखता हूं और न इस बात में कि लंबे समय तक मेरे दिमाग में एक ही किरदार कौंधता रहे.
संगीत, थिएटर और फिल्मी अभिनय के बीच लेखन का क्या स्कोप है?
मेरे पास कई कहानियां हैं, विचार तो हैं ही. यदि कभी मौका मिला और बाकी पहलू भी सध गए तो सबसे पहले अपनी ही किसी कहानी को पर्दे पर उतारना जरुर पसंद करूंगा, वैसे थिएटर मेरा प्यार है. उसे समय दे पाने की कोशिशें रहती हैं. मुझे वाकई थिएटर के लिए काम करते हुए खुशी होती है, लेखन के लिए जो कहानियों और विचारों का प्रवाह होता है वह तो है ही इसलिए संभावना कायम हैं.
ओटीटी पर भी आपका काम काफी सराहा जा रहा है, यह कैसा मीडियम है?
ओटीटी पर भी अभिनय पर ही फोकस होता है. मुझे तो अभिनय करने में ही मजा आता है चाहे वह फिल्म हो, सीरियल या ओटीटी. इसका कंटेंट थोड़ा अलग होता है लेकिन वह तो फिल्मों का भी होता है पुरानी और नई फिल्मों में फर्क देखिए. पहले टाइप्ड रोल होते थे लेकिन अब उनमें वेरायटी बढ़ती जा रही है.
पढ़ने की आदत अभिनय में कितनी मददगार होती है?
बहुत, अच्छा पढ़ने, पढ़ते रहने और चरित्रों की विस्तृत समझ अभिनय में निखार तो लाती ही है आपको चयन में भी आसानी देती है.