October 4, 2024
प्रदेशमध्यप्रदेश चुनाव

घोड़ों से विधायकों तक आई ‘हॉर्स ट्रेडिंग’

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे यूं तो 1 दिसंबर को आने हैं लेकिन अभी से जिस शब्द पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है वह है ‘हॉर्स ट्रेडिंग’ क्योंकि यदि स्पष्ट बहुमत किसी को नहीं मिल सका तो इसकी संभावना हमेशा बनी ही रहती है. यही वजह है कि यह शब्द की राजनीतिक गलियारों में बहुत इसतेमाल में है. यहां यह जानना भी राेचक है कि यह शब्द् आया कहां से है. वैसे तो हॉर्स ट्रेडिंग शब्द का इस्तेमाल साल 1800 के आसपास घोड़ों की बिक्री के लिए ही किया जाता था. तब व्यापारी चालाकी से, पैसे और मुनाफे के लिए घोड़ों को किसी के अस्तबल से खोलकर कहीं और छुपा देते थे और फिर पैसों के लेनदेन के दम पर सौदा किया जाता था। इसका मोटा-मोटा मतलब समझें तो यह है कि कारोबारी घोड़ों की खरीद फरोख्‍त और मुनाफा कमाने के लिए जो कुटिल तरीके अपनाते थे, उन्‍हें ही हार्स ट्रेडिंग कहा जाता था. बाद में धीरे-धीरे इस शब्‍द का इस्‍तेमाल, राजनीतिक उठापटक के परिपेक्ष्य में होने लगा। दरअसल जब एक पार्टी विपक्ष में बैठे अन्‍य नेताओं को अपने साथ मिलाने के लिए विभिन्न तरह का लालच देती है तो विधायकों और सांसदों की इस खरीद फरोख्त को राजनीति में हॉर्स ट्रेडिंग कहा जाता है। देश में जब किसी राज्य में चुनाव होते हैं तो सरकार बनाने के जादुई आंकड़े को पाने की कवायद में राजनीतिक दल अपने विधायकों की कोई रिजॉर्ट या किसी अन्य सुरक्षित जगह में बाड़ेबंदी कर, उन्हें एक साथ रखते हैं ताकि विरोधी दल, हॉर्स ट्रेडिंग के दम पर उनके समीकरण बिगाड़ ना दे.पिछले कुछ सालों में आपने महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक और मध्य प्रदेश में हॉर्स ट्रेडिंग के दम पर राज्य सरकारों के स्वरूप के बनने, अस्थिर होने और बिगड़ने की घटनाएं देखी ही होगीं। साथ ही, राजनीतिक दलों द्वारा यह पैंतरा राज्यसभा चुनाव में भी जांचा, परखा और आज़माया जा चुका है. कहा जाता है कि भारतीय राजनीति में हार्स ट्रेडिंग की शुरुआत साल 1967 से हुई जब हरियाणा के एक विधायक, गया लाल ने 15 दिनों के भीतर तीन बार दल बदलकर इस मुद्दे को राजनीति की मुख्यधारा में ला दिया था. फिर तो ‘आया राम गया राम’ का यह राजनीतिक जुमला पूरे देश में प्रचलित हो गया. मौकापरस्ती की इस प्रथा को बंद करने के लिए साल 1985 में 52वां संविधान संशोधन करते हुए, संविधान में 10वीं अनुसूची के माध्यम से दल बदल विरोधी कानून भी लाया गया लेकिन हमारे अत्याधिक बुद्धिमान राजनीतिक दलों ने, अंत: इसकी भी काट खोज ली. अब देखने वाली बात यह है कि क्या मध्यप्रदेश में कोई एक पार्टी, स्पष्ट बहुमत लाकर सरकार बनाएगी या फिर जोड़-तोड़ के दम पर सरकार बनाने के लिए हॉर्स ट्रेडिंग का यह जिन्न एक बार फिर, बोतल से बाहर निकाला जाएगा? इस प्रश्न का जवाब पाने के लिए, इंतज़ार कीजिए 3 दिसंबर का.