July 23, 2024
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Sahara : सहारा का जाना और नीतियों पर सवाल

सुब्रत राय सहारा या कहें सहारा परिवार के मुखिया के जाने पर कई तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. कोई इस बात को रेखांकित करना चाह रहा है कि देखिए आखिर में उनके बेटों ने ही विदेश से आने से मना कर दिया तो किसी को यही बताने का सही समय लग रहा है कि उसका भी पैसा डूब गया लेकिन यदि थोड़ा गहराई मं जाएं तो आप पाएंगे कि सहारा अपने पीछे कई नीतिगत सवाल छोड़ गए हैं जिनके जवाब यदि नहीं तलाशे गए तो पूरा सिस्टम ही कटघरे में रहेगा. दरअसल सहारा का उदय, बुरा समय और अस्त तीनों को ही तटस्थ नजरिए से देखा जाना चाहिए. संभव है उन्होंने सबसे पहले वे लूपहोल देखें हों जहां से उनके लिए राहें निकलती हों जैसा कि हर्षद मेहता और तेलगी ने किया लेकिन फिर भी सहारा कभी तेलगी और हर्षद की राह पर नहीं थे क्योंकि उनका वास्ता बहुत बड़े वर्ग से पडने वाला था. ऐसी कौन सी हस्ती थी जो उनसे मिलने के लिए तैयार न रही हो और यिद नीचे देखें तो उनके ‘परिवार’ का ही कोई सदस्य उन लोगों तक जुड़ा था जो सौ सौ पचास पचास रुपए जमा कर सुनहरे भविष्य के सपने देखते थे. वे जब उड़ान भर रहे थे तब भी जब मीडिया का एक बड़ा नाम थे तब भी और जब जेल जाते समय बेबस नजर आ रहे थे उस दौरान भी उन्होंने खुद से उम्मीदें नहीं टूटने दीं.यहां तक कि जेल में रहते हुए भी उन्होंने यही कहा कि मुझे बाहर जाने दीजिए मैं पैसा जुटाता हूं. सहारा मामला हमेशा ऐसा लगता रहा कि वे किसी बड़े जाल में फंस गए या फंसा दिए गए वरना उस व्यक्ति के लिए बेहद आसान था ‘बैली अप’ कर देना यहां तो न जाने के कितने धूर्त इसी फिराक में होते हैं कि पैसे लें और दीवालिया घोषित होकर मजे करें. यह सबसे आसान रास्ता था. जब सरकारी एजेंसियों का शिकंजा कसा तब वे बार बार आग्रह करते रहे कि व्यापार का क्रम मत टूटने दीजिए मैं सभी का पूरा पैसा चुकाऊंगा और इस बाबत उन्होंने अखबारों को फुल पेज विज्ञापन दे देकर घोषणा की लेकिन हमारे सिस्टम की रुचि इस बात में ज्यादा थी कि जैसे भी हो उन्हें जेल पहुंचाया जाए भले इस चक्कर में लोगों का पैसा अटक जाए. आज भी लगभग पच्चीस हजार करोड़ रुपयया सेबी के पास ऐसा पड़ा हुआ है जिसके लिए कोई राह नहीं सूझ रही है. मुझे हमेशा यही लगता है कि आप नीयत से तय कीजिए कि सजा किस स्तर की होनी चाहिए जेल जाने से पहले जब वे पैसा पानी की तरह बहा रहे थे तब भी मुझे तो कम से कम इरादा यही लग रहा था कि जैसे भी हो रोटेशन बना रहे लेकिन हमारा सिस्टम इसे ही तोड़ने पर आमादा था. जब सारे व्यवसाय के बचे हुए सारे रास्ते भी बंद कर दिए गए तब भी सहारा ने जो जीवटता से पैसा वापस देने का कौल किया वह कमाल से कम नहीं था.हां सहारा उन लोगों के लिए सबक जरुर बन गए जिन्हें लगता है कि बड़े संबंध हमेशा फायदा ही पहुंचाते हैं बल्कि कई बार तो लगता है कि उन्होंने अपने बड़े लोगों से करीबी संबंध होने की ही बड़ी कीमत चुकाई. उन्हें एक बड़े परिवार के पालक होने का, भारतीय खेलों को प्राेत्साहित करने और उन पर खूब पैसा लगाने और कुछ मामलों में समझौते न करने का बड़ा नुकसान हुआ. जिन्हें यहां समझौते शब्द को लेकर आपत्ति हो उन्हें शायद पता ही न हो कि पार्टी फंड की डिमांड पूरी न करने के एक व्यापारी को कितने नुकसान उठाने पड़ सकते हैं और राजनीतिक पार्टी के फंड में पैसा डाल देने भर से कितने फायदे हो सकते हैं. जो लोग आज यह गिनवा रहे हैं कि उन्होंने दूसरों का पैसा खाया तो उनके बेटे ही उनका अंतिम संस्कार करने नहीं आए उन्हें शायद अंदाजा भी न हो कि एक पिता जिन जंजालों में उलझा हो उनसे अपने बेटों को बचाने के लिए इसके लिए मना भी कर सकता था और शायद यही हुआ भी हो क्योंकि उने बेटों को भी किसी न किसी तरह से उलझाए जाने का अंदेशा तो होगा ही भले ही वे डायरेक्टर रहे हों या नहीं. कुछ लोगों को तो इस बात पर भी आपत्ति है कि वे देशप्रेम दिखाते थे और ऐसे लोग दिखावा कहते मिल भी रहे हें लेकिन कोई भी व्यक्ति देश की टीमों को स्पांसर तब करने के लिए राजी हो जब उससे आने वाला रिटर्न नगण्य हो तो इसे दिखावा तो नहीं ही कहा जाना चाहिए. हां बेहद महंगी लाइफ स्टाइल के लिए भी उनकी आलोचना करने वाले मौजूद हैं लेकिन कोई मुझे बताए कि किसी करोड़पति व्यक्ति को क्या बोर्ड मीटिंग में फटीचर की तरह जाना चाहिए और अबापका जवाब हां भी हो तो यह आपका निर्णय है जो दूसरों पर लादा नहीं जाना चाहिए. जब देश में घोटाले कर विदेश भाग जाने, दीवालिया घोषित कर देने और सजा काट लेने जैसे विकल्पों की मौजूदगी के बाद भी कोई अपनी जिम्मेदारी मान कर पैसे लौटाने की बात कह रहा हो तो कम से कम मेरी नजर में तो उसका सम्माान होना चाहिए. विमानन कंपनी का मालिक हो जाने वाला यदि अपने पुराने लंब्रेटा स्कूटर से इतना भावनात्मक जुड़ा रखता हो कि उसे मुख्शलय में भी मुख्य जगह रखवाए तो मैं ऐसे व्यक्तिको पसंद करना बंद नहीं कर सकता वह भी तब जबकि वह हमारे सिस्टम और कुछ लोगों की जिद का शकार हो गया हो, जिनके भी पैसे डूबे हैं उन्हें अब इसी सिस्टम से न सिर्फ अपना बकाया मांगना चाहिए बल्कि उस व्यवस्था की भी मांग करना चाहिए जिसमें निचला निवेशक ठगा न जा सके.