फिल्म- युद्ध पृष्ठभूमि का अलग हटकर चित्रण है ‘पिप्पा’
नाम तो पहली नजर में अजीब सा लगता है और यह भी समझने नहीं देता कि आखिर यह कहानपी क्या होगी लेकिन यह उस टैंक की कहानी पर आधारित है जो एंफीबियन है याने जमीन के साथ-साथ पानी में भी तैर सकता है या कहें कि चल सकता है ऐसे टैंक का उपयोग 1971 के इंडो पाक वार युद्ध में किया गया था. ब्रिगेडियर बलराम मेहता की आत्मकथा पर आधारित यह कहानी एक नए जोश से उनके 45 कैवलरी के कैप्टन होने के समय का अनुभव करती है जो न केवल आपको एक बैठक में देखने के लिए मजबूर करती है बल्कि परिवार के भाई बहनों के बीच संबंधों एवं रिश्तों की नमकीन फ्लेवर से भी साक्षात्कार कराती है. युद्ध के दृश्य आमतौर पर दर्दनाक होते हैं और जिन्हें देखने हम भारतीयों के लिए थोड़ा मार्मिक करने जैसा होता है परंतु इस फिल्म के फिल्मांकन में टैंक के दृश्य का जो चित्रण किया गया है वह अद्भुत है, दर्शनीय है और कुछ जगह तो कमाल है.
वहीं बल्ली यानी कप्तान बलराम मेहता अपने अभिनय तथा आगे से लीड लेने का जो श्रम करते हैं वह अद्भुत बन पड़ा है जो इस फिल्म का मुख्य बिंदु है. सदैव अपने भाई से लड़ते रहने के बाद भी युद्ध में रेकी करने गए अपने भाई के लिए अपने आप को झोंक देने का प्रयास आपको कहीं इमोशनल तो कर ही देता है. युद्ध भूमि की गोली के भय को भी प्रदर्शित करता है जो आपकी हृदय गति को बढ़ा तो देता है ही कहीं थोड़ा एड्रीनलीन का स्त्राव भी कर देता है. 1971 की इस लड़ाई में पूर्वी पाकिस्तान के नागरिकों की बेचारगी और पश्चिमी पाकिस्तान के नीति नियंताओं की दर्दनाक तस्वीर का बखूबी चित्रण किया है. पिप्पा की कहानी, चलचित्र में प्रतिशोध को भी न्याय संगत रूप से प्रदर्शित करने में सफल होती है.पिप्पा एक बहुत अच्छी युद्ध मूवी बन पड़ी है जो प्राइम पर उपलब्ध है और सभी अभिनेताओं ने अपनी इस कहानी के साथ न्याय करते हुए अच्छा प्रदर्शन किया है.
नोट : देखने योग्य अनिवार्य रूप से