October 4, 2024
दर्शनरोचक / प्रेरक

कर भला तो हो भला…

एक सेमिनार में 200 लोगों ने हिस्सा लिया। प्रवक्ता ने वहां बैठे हर इंसान को एक गुब्बारा दिया और उस पर अपना नाम लिखने को कहा। लोगों ने गुब्बारे पे अपना-अपना नाम लिख दिया। प्रवक्ता ने उन गुब्बारों को लिया और एक कमरे में रख दिया। फिर  उन लोगों से कहा कि आप लोग उस कमरे में जाइये और 5 मिनट में अपने नाम का गुब्बारा लाइए। सभी लोग कमरे में गए और धक्का-मुक्की करते हुए अपने नाम का गुब्बारा ढूंढ़ने लगे। 5 मिनट बीत गए पर किसी को भी अपने नाम का गुब्बारा नहीं मिला। प्रवक्ता ने लोगों को दोबारा कमरे में जाने को कहा, लेकिन इस बार यह जोड़ दिया कि कोई  भी गुब्बारा उठा लो और उसपे जिसका नाम लिखा है, उसे दे दो। 5 मिनिट से भी कम समय से सबके पास अपने नाम का गुब्बारा आ गया। सार यह है कि जब भी आप अपने मतलब के बारे में सोचेंगे, इच्छित नतीजा नहीं मिलेगा। दूसरों की भलाई का ख्याल करके किया गया काम आपको भी फायदा पहुंचाएगा।7. नासमझ वनवासी का पछतावा एक राजा वन भ्रमण के लिए गया पर कुछ समय बाद ही वह रास्ता भूल गया। बहुत देर तक भटकने के बाद उसे एक वनवासी की झोंपड़ी दिखायी दी। वहाँ उसकी अच्छी आव-भगत हुई। वनवासी से प्रभावित होकर राजा ने उसे तोहफे में चंदन का बाग दे दिया।  वनवासी को चंदन की उपयोगिता पता नहीं थी। उसने पेड़ों का काटना शुरू कर दिया। वह चंदन की लकड़ी से कोयला बनाता और बाजार में बेचता था। इस तरह वह लकड़ी से मामूली कमाई करने लगा। एक बार बारिश के कारण कोयला नहीं बन सका। नतीजतन, वनवासी को साबूत लकड़ी ही बेचना पड़ी। इसके बदले में उसे कोयले से ज्यादा रुपए मिले। लोगों ने उसे चंदन की असली कीमत समझाई। तब उसे अहसास हुआ कि अब तक कोयला बेचकर कितनी मामूली कमाई कर रहा था, जबकि वह चंदन की लकड़ी से काफी रकम बना सकता था। बड़ी बात यह है कि जिंदगी का एक-एक पल बहुमूल्य है.

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