July 27, 2024
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Analysis बनाने से ज्यादा ध्यान था किन्हें नहीं बनाना है

विदाई भाषण देखकर वे भी कह रहे हैं कि शिवराज सम्मानजनक विदाई के हकदार थे जो कल तक कह रहे थे कि यह चेहरा देख देखकर ‘बोर’ हो चुके हैं भले कांग्रेस को वोट दें लेकिन बदलाव तो होना चाहिए. कहानी अकेले मध्यप्रदेश की नहीं है राजस्थान में विधायक बैठक दल में राजनाथ का वसुंधरा को प्रस्तावक बतौर नए मुख्यमंत्री की चिट्‌ठी सौंपना और वसुंधरा का बेतरह चौंकना भी इसी कड़ी का हिस्सा है और यही हाल छत्तीसगढ़ का है जहां किसी को यह कहने का मौका नहीं मिला कि हमने तो पहले ही कह दिया था. सवाल तो इससे आगे खड़े होने है जहां पहली बात तो यही कि शिवराज, वसुंधरा और रमन ही नहीं प्रहलाद पटेल जैसे नाम अब किस तरह की प्रतिक्रिया देंगे हालांकि तीनों की ही पहली प्रतिक्रिया संभली हुई आई है लेकिन ये संभले हुए अंदाज कब तक कायम रह सकेंगे? शिवराज ने तो जो छवि गढ़ रखी है उसके अनुरूप वे जहर पी कर नीलकंठ हो जाने में भरोसा करेंगे और रमन सिंह बहुत ज्यादा डिमांडिंग होंगे ऐसा लगता नहीं है लेकिन वसुंधरा (और उनके बेटे) के तेवर क्या होंगे यह समय के साथ खुलेगा. चुनाव से पहले ही आम लोगों में यह धारणा थी कि जादूगर और महारानी में से किसी की भी सरकार हो बात एक ही है यानी कोई गुप्त समझौता है जिसमें पक्ष और विपक्ष का भेद मिट चुका है. जो हालात चनावी नतीजों के बाद बने उसमें कतई आश्चर्य नहीं कि कांग्रेस वसुंधरा को साथ देने के लिए भी उद्यत हो कि बस वे विद्रोह का बिगुल फूंक दें. इसमें उन्हें सिर्फ कांग्रेस का साथ ही नहीं ब्यूरोक्रेसी के एक बड़े धड़े का साथ भी मिलना तय होता लेकिन जिस अंदाज में राजनाथ ने चिट्‌ठी पकड़ा कर वसुंधरा की तरफ से मुंह विधायक दल की तरफ कर लिया उसका संकेत यह था कि निर्णय तो यही है बाकी आपकी मर्जी. शिवराज जानते हैं कि मोदी के आने के बाद और उनकी नाराजी के बावजूद उन्हें काफी समय मिल गया और यदि मोदी कार्यशैली से देखें तो यह समय जरुरत से ज्यादा ही था, यूं भी शिवराज को हटाने के लिए यह समय अभी नहीं तो कभी (अगले लंबे समय तक ) नहीं जैसा था. तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री बनाने से ज्यादा महत्व इस बात को दिया गया कि किन्हें मुख्यसमंत्री नहीं बनाया जाना है. कुछ की उम्मीदें जगाने से ज्यादा जोर इस बात पर था कि किनकी उम्मीदें मद्घम कर दी जाएं और कयास लगाने वालों को भी एक चेतावनी कि कम से कम इस जोड़ी के रहते टनों कागज काला कर उलटे सीधे नाम चलाते रहने से बेहतर यही होगा कि निर्णय का इंतजार करते रहें वरना मुंह की खानी पड़ेगी. यह नई रस्म है जिसमें दबाव बनाने, खुद को अपरिहार्य बताने और अपना कद महसूस कराने की कवायदें बुरे हश्र का शिकार होती हैं और वह भी तब जब अपने काम के बजाए वोट मांगने के लिए आपने मोदी नाम का सहारा लिया हो. इसे राजनीति की क्रूरता कहने वालों को याद रखना चाहिए कि न 18 साल बतौर मुख्यमंत्री कम होते हैं और न वह कद जो वसुंधरा को लंबे समय तक दिया गया. यूं भी यह चलन अकेली राजनीति का नहीं है. यदि आपकी बिजनेस खबरों में रुचि है तो अपको एपल के स्टीव जॉब्स से लेकर हाल ही में चैटजीपीटी वाले सैम अल्टमैन तक की खबर पता ही होंगी जिन्हें उन्हीं की बनाई हुई कंपनियों से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसके बाद की कहानी राजनीतिज्ञों के लिए भी समझने की है और वह यह कि आप कितने जरुरी या गैर जरुरी बचे हैं. एपल का काम जॉब्स के बिना नहीं चल सका क्योंकि उन्होंने एक ऐसी समानांतर कंपनी खड़ी कर दी जिसके बिना एपल काम ही नहीं चला सकती थी और यही अल्टमैन के साथ हुआ उन्हें बाहर किया गया तो कर्मचारयों के इस्तीफों की ऐसी बाढ़ आई कि तीन दिन में ही ऑल्टमैन कंपनी में अपनी जगह वापस मौजूद थे और इन तीन दिनों में भी उनके पास माइक्रोसॉफ्ट का ऐसा ऑफर था जो चैटजीपीटी के अस्तित्व के लिए खतरा बन जाता. जिन नेताओं को दरकिनार किया गया उनके पास चुप बैठने के दो ही कारण हैं पहला तो यह कि वे वाकई पार्टी के अनुशासित सिपाही हैं जिन्होंने मान लिया कि अब तक जो मिला वह भी कम नहीं है और दूसरे वे हैं जिनकी महत्वाकांक्षा तो बहुत बड़ी हैं लेकिन वे अपरिहार्य नहीं रह गए हैं या शुद्ध राजनीतिक शब्दों में कहें तो जिनके पार्टी से निकल जाने पर भी कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ना है. समझौता होगा इन दरकिनार किए गए नेताओं का भी कहीं न कहीं साम्य बैठाया जाएगा क्योंकि आडवाणी को भी र्मादर्शक मंडल में तो भेजा ही गया था. शिवराज इसलिए फायदे में होंगे क्योंकि राज्य में पकड़, जनता के बीच छवि और धन्यवाद भाव से कुर्सी छोड़ने में वे सबसे अच्छे रहे लेकिन वसुंधरा के लिए आने वाले दिन वैसे ही चौंकाने वाले होते रहेंगे जैसे कल राजनाथ के हाथ से चिट्‌ठी लेते ही वे चौंकी थीं और रहा रमन सिंह का सवाल तो वे पिछले पांच साल से कुर्सी पर थे ही नहीं और पांच साल हालात बदल जाने के लिए बहुत होते हैं खासतौर पर राजनीति के क्षेत्र में.