बगावत बिगाड़ रही समीकरण
मध्यप्रदेश के चुनाव में विरोध और बग़ावत भी जमकर देखी जा रही है। कांग्रेस और भाजपा देानों ही दलों में बगावत पहले के मुकाबले कहीं ज्यादा है। विचारधारा की सारी बड़ी बातें दरकिनार कर सालों से अपने दलों से जुड़े रहे प्रत्याशी अब स्वतंत्र हो गए हैं. इस चुनाव में कई विधानसभा सीटों का भविष्य अब इन असंतुष्टों के ही हाथों में है जो किसी का कहना मानते नहीं दिख रहे हैं। विचारधारा ही नहीं रिश्ते भी नहीं देखे जा रहे हैं क्योंकि विधायक बनने की ललक इन सब पर भारी पड़ रही है. होशंगाबाद में दो सगे भाई आमने सामने हैं। सागर में जेठ और बहु तो एक जगह चाचा और भतीजे एक दूसरे के खिलाफ हैं। संबंधियों के नजरिये से तो बहुतेरे प्रत्याशी दोनों दलों ने उतारे हैं. इंदौर एक में संजय शुक्ला कांग्रेस से खड़े हैं तो तीन से उनके ही परिवार से गालू शुक्ला भजपा से मौजूद हैं. मध्यप्रदेश में पिछले जनादेश के बाद जो बगावत हूई थी उसका बड़ा स्वरूप अब चुनावों में नजर आ रहा है तो भाजपा में भी इसी दौरान लिए गए कांग्रेसियों के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर स्वर हैं. वैसे तो खुलकर अपनी पार्टी के खिलाफ मैदान पकड़ चुके प्रत्याशियों को लेकर चुनाव परिणामों पर आकलन लगाना मुश्कल काम है लेकिन यह तयशुदा तौर पर कहा जा सकता है कि इनका निर्णायक सीओं पर असर रहना है और यूं भी इस बार सत्ता संतुलन एकतरफा तो नजर नहीं आ रहा है. प्रदेश के कमोबेश हर अंचल में बग़ावत की बयार नजर आ रही है. ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस संभावनाएं तलाशते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया पर निशाना लगा रही थी लेकिन टिकट वितरण में गड़बड़ी के बाद अब हालात बदले हुए हैं और कांग्रेस का संघर्ष खुद से ही ज्यादा है. शिवपुरी से वीरेंद्र रघुवंशी और केपी सिंह की सीट बदलने ने समीकारणबिगाड़े ही हैं. असंतोष और भितरघात कई सीटों पर परिणाम बदलने की स्थिति में साफतौर पर हैं. चुनावी प्रबंधन में बीजेपी आगे है और असंतुष्टों को मनाने में भी इसके नेता पूरा जोर लगा रहे हैं यानी कांग्रेस पर इसका असर भाजपा से ज्यादा ही होगा.