July 23, 2024
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ग्वालियर–चंबल से तय होने हैं कई भविष्य

कभी कांग्रेस में रहे मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद से मध्य प्रदेश की राजनीति दिलचस्प मोड़ पर है। ग्वालियर चंबल में महल के विरूद्ध सियासत करने वाले भाजपाई आज अपनी प्रासंगिकता साबित करने की जद्दोजहद कर रहे हैं। पिछली बार सिंधिया ने अपने करिश्मे के बदौलत इस इलाके की कुल 34 सीटों में से 26 सीटों पर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी महज सात सीटों पर सिमट कर रह गई थी। वहीं, एक सीट बीएसपी के खाते में गई थीं. सियासी जानकार प्रदेश में कांग्रेस के 15 साल के वनवास को खत्म करने के पीछे सिंधिया के चेहरे को सबसे बड़ा फैक्टर मानते हैं। लेकिन कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने और ज्योतिरादित्य सिंधिया के लोकसभा चुनाव हारने के बाद प्रदेश की सियासत की ऐसी तस्वीर बदली, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी.
बताया जाता है कि चुनाव में चेहरा बनाए जाने के बाद जब मुख्यमंत्री बनाने की बारी आई तो कमलनाथ को तरजीह दी गई। इसके बाद सरकार में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबियों के साथ भेदभाव शुरू होने लगा। जिसने आखिरकार प्रदेश से कमलनाथ सरकार की और कांग्रेस से सिंधिया की विदाई की पटकथा तैयार कर दी। इसी के साथ 15 साल बाद बनी कांग्रेस सरकार 15 माह बाद ही सत्ता से चल बसी। विधानसभा चुनाव में सिंधिया एकाध प्रत्याशियों को छोड़ दें तो अधिकांश को बीजेपी से टिकट दिलाने में कामयाब रहे हैं. ऐसे में क्या सिंधिया राजघराने का यह सितारा भारतीय जनता पार्टी को वैसी कामयाबी दिला पाएगा, जैसा 2018 में इसने कांग्रेस को ग्वालियर चंबल के रण में दिलाया था। साथ ही 2023 का विधानसभा चुनाव परिणाम मध्य प्रदेश की सियासत में महल का भविष्य भी तय करेगा.