रिलायंस का साथ भी नहीं बचा पा रहा डंजो को
ग्रॉसरी डिलीवरी कंपनी Dunzo फंडिंग जुटाने की कोशिश कर रही है, लेकिन कोई इंतजाम नहीं हो पाने से इसकी हालत खराब होती जा रही है. कंपनी को कई बार छंटनी का रास्ता अपनाना पड़ा और इस बीच को-फाउंडर दलवीर सूरी ने भी कंपनी का साथ छोड़ दिया. एक अन्य को-फाउंडर मुकुंद झा की भूमिका में भी बदलाव हो रहा है. इस स्टार्टअप की हालत इतनी खराब कैसे हो गई इस पर अलग अलग राय हैं। जुलाई 2014 में इसकी शुरुआत कबीर विश्वास ने जिसमें उनके साथ मुकुंद झा, दलवीर सूरी और अंकुर अग्रवाल भी जुड़े. डंजो ने 5 निवेशकों से पहली बार में 5.40 करोड़ रुपये जुटाए थे. दूसरी बार में 9.81 करोड़ रुपये फिर जुटाए. तीसरी बार में 41 लाख रुपये की फंडिंग ली थी और चौथी बार में 100 करोड़ रुपये की फंडिंग जुटाई थी. गूगल ने भारत के किसी स्टार्टअप में यदि पहली डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट की थी तो वह डंजो को ही की थी. इसके बाद 7 करोड़ रुपये की फंडिंग फिर हासिल की गई कुछ ही समय बाद 25 करोड़ रुपये एक और इन्वेस्टर से लिए गए और दीप कालरा ने भी करीब 3 करोड़ रुपये डाले.
ऐसी कई फंडिंग के बीच कंपनी वैल्युएशन 300 मिलियन डॉलर से अधिक पहुंच गया लेकिन नुकसान 768 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था. इस बीच रिलायंस ने 25.8 फीसदी स्टेक लेकर थोड़ी राहत दी. रिलायंस ने करीब 1800 करोड़ रुपये डंजो में डाले तो कंपनी के आईपीओ लाने की खबरें चलने लगीं और डंजो को नंबर-1 क्विक कॉमर्स कंपनी कहा जाने लगा. पहले हड़ताल और फिर गलत निर्णय के चलते 2022 में निक्सन 464 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. कुछ डार्क स्टोर बंद करने की नौबत आ गई. इस दौरे भी कंपनी को फंडिंग मिल गई लेकिन हालात नहीं सुधरे. अब हालत यह है कि कई निवेशकों सहित दूसरी संबंधित कंपनियों ने डंजो को लीगल नोटिस भेज दिए हैं। कंपनी का वर्कफोर्स छंटनी के बाद बेहद छोटा रह गया है और नए निवेश की संभावना कहीं से नजर नहीं आ रही है।